आख़िर लाश है कहाँ..?
समझ नहीं आता आख़िर ऐसा कैसे हो सकता है वरुण। खून तो हुआ है ये साफ़ साफ़ नज़र आ रहा है, लेकिन पूरे पैंतालीस दिन हो गए और अब तक हमें लाश नहीं मिली, यहां तक कि मरी हुई उस बच्ची से मिलती जुलती कोई दूसरी लावारिश लाश भी नहीं मिली। आख़िर मामला क्या है वरुण..? एक बार बच्ची की माँ को फ़िर से बुलाओ, मुझे लगता है वो जरूर कुछ छुपा रही है।
फ़ाइल को बुरी तरह टेबल पर पटकते हुए सीनियर इंस्पेक्टर रुद्र ने अपने जूनियर इंस्पेक्टर वरुण से कहा।
इंस्पेक्टर वरुण :- "लेकिन सर उन्हें बुलाने की क्या जरूरत है वो तो हर दिन भी लगभग 10 बजे आती है, और आकर वहीं सवाल दोहराती है कि उनकी बेटी की लाश मिली या नहीं.? आज भी आती ही होगी सर, तब तक मैं तीन कप चाय मंगवाता हूँ।
सीनियर इंस्पेक्टर रुद्र :- "ठीक है फ़िर इंतजार ही करते है"।
औरंगाबाद के दाऊद नगर थाने में सुबह के पौने दस बज रहे थे। गर्मी की गर्म सुबह में भी यहाँ गर्म चाय की तलब से हर स्टाफ़ बैचेन हुआ जा रहा था। कभी पुलिसिये डंडों की आवाज़, फाइलों को पटकने की आवाज़,पन्नो के फड़फड़ाने की आवाज़, ऊपर घूम रहे सीलिंग पँखो की घिसी घिसी सी आवाज़, और वर्दीधारियों के जूते की आवाज़। इन सब से थाने का माहौल भी गर्म ही नज़र आ रहा था।
ख़ैर लगभग 15 मिनट बाद इंस्पेक्टर रुद्र के कमरे में तीन चाय के खाली प्यालों के साथ तीन लोग भी थे। एक लगभग 27-28 वर्ष की महिला राधिका जी, जो की दाऊद नगर में ही किसी सरकारी स्कूल की टीचर थी। उनके साथ इंस्पेक्टर रुद्र और वरुण भी थे। राधिका जी वही है, जिनकी सात वर्षीय एकलौती बेटी जुली का खून हुआ था, लेकिन उसकी लाश पिछले पैंतालीस दिनों से पुलिस को मिल ही नहीं रही थी। इंस्पेक्टर रुद्र ने इस बार थोड़े शख़्त लहज़े में राधिका जी से इस केस को लेकर बाते की थी। लेकिन उतने ही सपाट और सीधे लहज़े में सारे सवालों के जवाब देकर राधिका जी अपने स्कूल लौट गयी थी।
इंस्पेक्टर वरुण भी कल रात सड़क पर बेधड़क शराब पीकर हंगामा मचाने वाले छः लड़को की कुटाई करने के लिए चले गए थे।
केबिन में अकेले बैठे इंस्पेक्टर रुद्र अब बड़े ही गहराई से इस जुली मर्डर केस को समझ रहे थे। मामला ये था कि औरंगाबाद शहर के केरला समाजम स्कूल में आज से पैंतालीस दिनों पहले स्कूल की पच्चीसवीं सालगिरह मनाई जा रही थी। जहां शहर के जाने माने नेताजी को मुख्य सदस्य के तौर पर निमंत्रण दिया गया था। चुकीं नेताजी उस स्कूल के पुराने ट्रस्टी थे। कभी बच्चों की फीस माफ़ करवाकर तो कभी री-एडमिशन करवाकर उन्होंने हमेशा ही स्कूल की मदद की और इसी वजह से चुनाव के वक़्त अच्छे खासे लोगों को अपनी तरफ़ कर रखा था।
राधिका जी की बेटी जुली ने एक साल पहले ही इस स्कूल में क्लास दो में दाखिला लिया था। लेकिन पढ़ाई में होशियार होने की वजह से नेताजी को माला पहनाकर स्वागत करने का सौभाग्य उसे ही मिला था। उस शाम नेताजी को माला पहनाते वक़्त ही जुली और नेताजी में दोस्ती हो गयी थी, पूरे फंक्शन के दौरान जुली नेताजी के साथ ही बैठी मिली। उस दिन जुली से बातें करने में नेताजी इतने मगशूल हो गए कि उन्होंने अपना भाषण भी नहीं दिया। नेताजी के पी.ए. ने साफ़ साफ़ उनके भाषण के लिए इनकार कर दिया था।
फ़िर करीब रात के 8 बजे प्रोग्राम ख़तम हुआ। जुली को घर के जाने वाली वैन समय से स्कूल पहुँच तो गयी थी लेकिन नेताजी ने ही वैन के ड्राइवर से कह दिया था कि बच्ची को चॉकलेट दिलवाकर वे ही उसे उसके घर पहुँचा देंगे, और इस तरह जुली नेताजी के कार में ही बैठकर स्कूल से निकल गयी।
लेकिन रात के 9 बजे तक भी जब वो घर नहीं पहुँची तो राधिका जी को उसकी चिंता हुई। हालांकि वे जानती थी कि स्कूल में प्रोग्राम में है और इसलिए देर हो रही है। लेकिन जुली अक्सर रात के 9 बजे तक सो जाया करती थी इसलिए परेशान होकर जब राधिका जी ने वैन के ड्राइवर को फ़ोन लगाया और उसी से जब उन्हें मालूम चला कि जुली नेताजी के साथ एक घँटे पहले ही स्कूल से निकल गयी है तो राधिका जी के होश उड़ गए। उन्होंने जब स्कूल से नेताजी का नंबर लेकर फ़ोन लगाया तो फ़ोन भी स्विच ऑफ बता रहा था। उन्होंने लगभग हर तरफ़ से नेताजी से बात करने की कोशिश की लेकिन बात नहीं हो पाई। तब मज़बूरन राधिका जी को पुलिस की मदद लेनी पड़ी उन्होंने दाऊद नगर थाने में जाकर पूरी बात बताई तो इंस्पेक्टर रुद्र ने जुली की खोजबीन शुरु कर दी।
करीब रात के ग्यारह बजे जब पुलिस टीम नेताजी के फॉर्म हाउस में पहुँची तो गार्ड ने उन्हें बताया कि नेताजी तो कब से एक बच्ची के साथ उनके कमरे में बैठे है। लेकिन जैसे ही पुलिस नेताजी के कमरे में पहुँची तो उन्हें खून से सना हुआ बिस्तर और अल्कोहल के नशे में नेताजी पड़े हुए मिलें। उनके हाथों में घास काटने वाला एक औजार जिसे हँसुआ कहते है वो भी था, जिसपर खून लगा हुआ था। फॉर्म हाउस के कैमरे की रिकॉर्डिंग में भी साफ़ साफ़ दिखाई दे रहा था कि नेताजी एक बच्ची को लेकर अपने फॉर्म हाउस में आये थे। फॉर्म हाउस का गार्ड भी ये बात बोल रहा था।
बिस्तर की चादर में खून लगा हुआ था, बच्ची के कपड़े,स्कूल का बैग, उसके जूते सबकुछ वहीं था सिवाएँ उस बच्ची की लाश के। उस पूरी रात बच्ची की लाश को पुलिस ढूंढती रही लेकिन वो कहीं नहीं मिली। जबकि लैब में जुली के खून के नमूने को पेश करने के बाद एक हैरतअंगेज जानकारी मिली कि बच्ची को पहले किसी दूसरे तरीक़े से मारा गया था, फ़िर वो पूरी तरह मरी या नहीं इस चीज़ की पुष्टि करने के लिए ही उसपर धारदार हसुएँ से वार किया गया था। खून से ही पता चल रहा था कि ये जुली के मर जाने के बाद निकला हुआ खून था। जुली के ब्लड ग्रुप से मैच करता ये खून चीख चीख कर बता रहा था कि इस बड़े से नेताजी ने बेरहमी से उसे मार डाला।
नेताजी को उसी वक़्त अरेस्ट कर लिया गया था, लेकिन सुबह होश में आने के बाद नेताजी बार बार यहीं बोल रहे थे की वे किसी जुली नाम की बच्ची को नहीं जानते, यहाँ तक कि फंक्शन वाले दिन शाम के बाद से उन्हें कुछ भी याद नहीं आ रहा था कि वे किसके साथ थे, उन्होंने क्या क्या किया। लेकिन इंस्पेक्टर रुद्र बड़े अच्छे से जानते थे कि नेताजी अपने बचाव के लिए इस तरह की बहकी बहकी बातें कर रहे है। उन्होंने नेताजी से सच उगलवाने के लिए हर तरह के हथकंडे अपनाए, यहां तक कि इसी सच उगलवाने के दौरान नेताजी का एक आँख से दिखना भी बंद हो गया था। लेकिन नेताजी थे कि अपने पहले बयान से हट ही नहीं रहे थे, ऊपर से दूसरी मुशीबत थी जुली के लाश का ना मिलना। अब तो करीब दो महीने होने को आये थे।
अगर अगले कुछ दिनों तक भी जुली की लाश ना मिली तो मज़बूरब नेताजी को रिहा करना पड़ेगा जो कि इंस्पेक्टर रुद्र कतई नहीं चाहते थे। नेताजी के काले कारनामो की खबर वैसे तो पूरे शहर को थी लेकिन हर बार ही सबूतों की कमी से नेताजी को छुट्टी मिल जाती थी। लेकिन इस बार मामला खून का था इंस्पेक्टर रुद्र इस मौके को हाथ से जाने देना नहीं चाहते थे।
पता नहीं क्यों लेकिन इन दिनों इंस्पेक्टर रुद्र राधिका जी पर बड़ी पैनी नज़र बनाकर रखें थे,शायद उस डायरी की वजह से जिसे एक दीन राधिका जी ग़लती से थाने में छोड़कर चली गयी थी। सात साल पुरानी डायरी थी ये जिसमें उन्होंने अपने गर्भावस्था के आठ महीनों का जिक्र किया था। लेकिन डायरी के आख़िरी पन्ने में जो लिखा था वो बात इंस्पेक्टर रुद्र समझ नहीं पा रहे थे।
डायरी के आख़िरी पन्ने में लिखा था।
"मेरी बच्ची, तुम एक लड़की थी। तुम्हारे हैवान पिता ने तुम्हारे जन्म से पहले ही तुम्हें बेरहमी से मार डाला। उन्होंने मुझे धोखा दिया है। मेरी "जुली" मुझे माफ़ कर देना मैं तो तुम्हें इस दुनियां में दुबारा ला भी नहीं सकती क्योंकि डॉक्टर ने कहा है कि अब मैं उस लायक़ भी नहीं हूँ।
आख़िर अपनी जीती जागती लड़की के विषय में कोई ऐसा कैसे लिख सकता है..? क्या जुली उनकी दूसरी औलाद थी... लेकिन इसमें तो लिखा है कि वे दुबारा माँ भी नहीं बन सकती। हालांकि इसे लिखने के बाद भी डायरी में कुछ सफ़ेद पन्ने खाली तो थे, लेकिन शायद ये लिखने के बाद दुबारा उसमे कुछ लिखना राधिका जी ने जरूरी नहीं समझा। हा बस इसके बाद कुछ मनोविज्ञान के डॉक्टरों का नाम पता लिखा था उन्होंने इसमें।
ख़ैर इस डायरी को पढ़ने के बाद ही इंस्पेक्टर रुद्र राधिका जी के पीछे जासूस बनकर पड़े थे और उनकी हर गतिविधियों में नज़र बनाये रखें थे।
अपने बारे में राधिका जी ने बताया था कि उनके पति बंगाल के एक मामूली से किसान थे। वे औरंगाबाद किसी काम से आये थे, फ़िर उन्होंने राधिका जी से शादी कर ली लेकिन बंगाल में रह रहे उनके पति के घरवालों को इस शादी से कोई मतलब नहीं था ना ही वे ख़ुश थे,क्योंकि राधिका जी एक अनाथ लड़की थी उनका कोई भी अपना नहीं था। जुली के जन्म के बाद उनके पति एक दिन अपने गांव बंगाल गए और वहीं से ख़बर मिली कि एक सड़क हादसे में उनकी जान चली गयी। उसके बाद राधिका जी नन्हीं सी जुली को लेकर औरंगाबाद में ही किराए पर इधर उधर रहने लगी इस बीच उन्हें सरकारी नौकरी भी लग गयी और उनका और जुली का जीवन आराम से चल पड़ा।
लेकिन अब डायरी में लिखी बातें एक अलग ही कहानी सुना रही थी। राधिका जी का पीछा करते हुए ही इंस्पेक्टर रुद्र को पता चला कि राधिका जी अब भी अक्सर अपने उस अनाथाश्रम में जाती रहती है जहां वे पहले रहा करती थी। एक दिन इंस्पेक्टर रुद्र भी उनके पीछे पीछे आश्रम तक चले गए और दूर से ही राधिका जी को देखने लगे। राधिका जी आश्रम के ही कुछ बच्चों के साथ बैठी थी। लेकिन उन बच्चों में एक अजीब दिखने वाली लड़की भी थी, कद काठी और आवाज़ से तो छोटी बच्ची ही मालूम पड़ती थी लेकिन बात करने के उसके तरीक़े से और सामान्य व्यवहार से वो थोड़ी बड़ी लग रही थी। उसका चेहरा भी अजीब सी बनावट लिए हुए था।
राधिका जी के अनाथालय से बाहर निकलने के बाद इंस्पेक्टर रुद्र भी बग़ैर यूनिफॉर्म के उस अनाथाश्रम में गए। उन्होंने बच्चों से मुलाक़ात की और उस अजीब सी दिखने वाली लड़की के बारे भी जानकारी इकट्ठा की। आश्रम के प्रबंधकों से ही मालूम चला कि ये लड़की मीनाक्षी थी, और ईश्वर का ही एक चमत्कार थी। असल मे दिखने में वो भले ही 7-8 साल की कोई बच्ची थी लेकिन उम्र में वो करीब 32 साल की एक समझदार लड़की थी। राधिका जी ही करीब दो महीने पहले उन्हें यहां लेकर आई है, अब वे आश्रम में एक शिक्षिका का काम कर रही है।
बच्चों के मन से नकरात्मकता हटाने में और मानसिक रूप से उन्हें मजबूत बनाने का काम करती है वो। क्योंकि वे एक मनोचिकित्सक भी है। उनकी सबसे बड़ी खूबी ये है कि वे एक चुटकी में आपके दिमाग़ को हिप्नोटाइज़ कर सकती है। दिमाग से इस खेल को खेलना उनके बाएं हाथ का काम है। ईश्वर ने उन्हें भले ही शारीरिक रुप से कमज़ोर बनाया था, उसका शारिरिक विकाश भी बचपन में एक हादसे के बाद नहीं हो पाई, क्योंकि उस हादसे में उसके शरीर का वहीं नस दब गई थी जो उसे लंबाई देती। लेकिन दिमाग़ में वो किसी आम शख़्स से भी ज़्यादा समझदार थी।
अनाथालय से बाहर निकलते वक्त इंस्पेक्टर रुद्र बड़े ही जोशीले नज़र आये क्योंकि शायद अब उन्हें मालूम चल गया था कि "लाश कहाँ है"।
इस दिन के करीब तीन दिनों बाद :-
एक बेहद ही अंधेरा सा कमरा था ये कमरे में 100 वाट का एक बल्ब जल तो रहा था लेकिन उसकी धुंधली सी रौशनी कमरे में कुछ ख़ास फैल नहीं पा रही थी।
इसी कमरे में दर्द से बेहाल राधिका जी एक कुर्सी पर बैठी थी, उनके सामने ही एक लेडी कांस्टेबल हाथ में रबड़ की बेंत लिए खड़ी थी। राधिका जी के आगे वाली कुर्सी में इंस्पेक्टर रुद्र बैठे थे, और उनके सामने ही इंस्पेक्टर वरुण भी खड़ा था। इंस्पेक्टर रुद्र इस वक़्त बहुत गुस्से में नज़र आ रहे थे। पिछले दो दिनों से वो लगातार राधिका जी से कुछ सवाल पूछ रहे थे लेकिन बार बार वे बातों को घुमाकर उन्हें गुमराह करने की कोशिश कर रही थी। लेकिन अब जब राधिका जी के डॉक्टर दास ने भी अपनी बात कह दी थी तब कहीं जाकर राधिका जी सच बताने को तैयार हुई थी।
उन्होंने बताया :-
उस वक़्त मैं होस्टल में रहकर ही कॉलेज की पढ़ाई पूरी कर रही थी। अपना खर्चा चलाने के लिए मैं एक साइबर कैफ़े में पार्ट टाइम जॉब भी किया करती थी। उस वक़्त शहर के जाने माने नेताजी, नेताजी बने नहीं थे बल्कि एक उभरते हुए नौजवान नेता बनने की तैयारी में थे। अक्सर वे अपने चुनाव का विज्ञापन करने के लिए कॉलेज कैंपस में आया करते थे। और यहीं उनकी मुलाक़ात मुझसे हुई थी। दो से तीन मुलाकातों के बाद ही उन्होंने मुझसे अपने प्यार का इज़हार किया था, और बचपन से ही प्यार को तरसती मैं एक पल में ही उनके इज़हार को स्वीकार लिया था।
हम अब छुप छुपकर मिलने लगे थे। नेताजी ने ख़ुद के साथ जोड़कर मुझे सुंदर भविष्य की अनेकों सपने दिखाए थे। और उन्हीं सपनों के जादुई रंग में ख़ोकर मैं उनके कहें बातों को बगैर सवाल के मानती रही। इसी दौरान करीब नेताजी से मुलाक़ात के दो महीने बाद मुझे पता चला कि मैं माँ बनने वाली हूँ, एक बिन ब्याही माँ। लेकिन मुझे इस से कोई असुविधा भी नहीं थी क्योंकि चुनाव के नतीजे जल्द ही आने वाले थे और नेताजी ने कहा था कि रिजल्ट के आते ही वे मुझसे शादी करेंगे।
फ़िर चुनावी रिजल्ट आये और नेताजी इस चुनाव में जीत गए थे। मैं बहुत ख़ुश हुई थी लेकिन मेरी ख़ुशी ज़्यादा देर नहीं चली। मैंने ग़ौर किया नेताजी अब मुझे नजरअंदाज करने लगे थे। वे अब मेरे फ़ोन्स का जवाब भी नहीं देते, मुझसे मिलते भी नहीं थे। शायद उन्हें लगने लगा था कि मुझसे शादी कर के उनका उभरता हुआ चुनावी करियर बर्बाद हो जाएगा। अब तो पूरे होस्टल को मेरे गर्भवती होने की बात पता चल गयी थी। लोग मुझे अब बड़ी ही अजीब निगाहों से देखते थे। एक दिन मैंने नेताजी को मैसेज भेजा की अगर जल्द ही वे मुझे अपने साथ नहीं ले गए तो उनके ख़िलाफ़ एक चिट्ठी लिखकर मैं होस्टल से कूदकर अपनी जान दे दूंगी।
शायद इसी धमकी का असर था जब एक शाम उन्होंने मुझसे कहा कि वे मुझसे मिलना चाहते है, मैं उनके कहे एक रेस्टुरेंट में उनसे मिलने आ जाऊं। उस वक़्त मेरी गर्भावस्था का आठवां महीना चल रहा था।
हम शहर के जाने माने एक रेस्तरां में मिलें नेताजी हमारी शादी की प्लानिंग बता रहे थे, की इसी दौरान खाना खाने के बाद मेरे पेट मे दर्द शुरू हो गया। नेताजी ने कहा शायद बच्चे के जन्म का वक़्त हो गया है, हमें हॉस्पिटल चलना चाहिए। मुझे भी पता था कि कुछ बच्चे समय से पहले पैदा हो जाते है। हम सब एक बड़े से प्राइवेट हॉस्पिटल में गए, जहां दर्द की वजह से मैं बेहोश हो गयी और सारी रात बेहोशी में ही पड़ी रही। सुबह जब होश में आयी तो मुझे एक मरी हुई बच्ची दिया गया, कहा कि बच्ची तो पेट मे ही मर गयी थी रात ऑपरेशन कर के इसे बाहर निकाल दिया गया। मेरा मन निराशा में डूब गया था मैं वहीं हॉस्पिटल में नेताजी का इंतजार कर रही थी, लेकिन पूरे दो दिन बीत गए थे और नेताजी एक बार भी मुझसे मिलने नहीं आये थे।
हॉस्पिटल की एक नर्स ने ही छुपकर मुझे बताया था कि मेरी बच्ची को जन्म से पहले ही इंजेक्शन देकर मार दिया गया था और ऐसा करने के लिए नेताजी ने ही हॉस्पिटल वालों को पैसे दिए थे। ये सुनकर तो मेरे होश उड़ गए अपने सारे रिपोर्ट्स लेकर मैं नेताजी के घर गयी और इन्हीं रिपोर्ट्स से मुझे पता चला कि मैं कभी माँ नहीं बन सकती। नेताजी के घर जाकर जब मैंने उनसे सवाल पूछे और साथ में पुलिस के पास जाने की बात की तो उन्होंने हमारे रिश्ते को स्वीकारने से ही मना कर दिया। और तो और मेरी बेहोशी के वक़्त उन्होंने अपने ही ड्राइवर के साथ मेरी अश्लील तस्वीरें ले लिए थे जिसे दिखाकर उन्होंने मुझसे कहा कि अगर मैं पुलिस के पास जाऊं तो उल्टा मुझपर ही केस कर देंगे कि ड्राइवर के साथ मेरा चक्कर चल रहा था लेकिन अब मैं नेताजी को फ़साने के लिए ये सब बोल रही हूँ।
सच कहूं तो इस घटना से मैं बुरी तरह टूट गयी थी। कभी परिवार का प्यार क्या होता है ये तो नहीं जान सकीं थी लेकिन पराए लोगों का स्वार्थ कैसा होता है ये अच्छे से जान गई थी। मैं बहुत ज़्यादा डिप्रेशन में चली गयी थी, और यहीं वजह थी कि मैंने मनोविज्ञान के डॉक्टर मिस्टर दास से मुलाक़ात की। और उन्होंने मेरी मुलाक़ात डॉक्टर मीनाक्षी से करवाई। मीनाक्षी जी की वजह से ही मैं पहले से बेहतर हो पाई। अब मैं बिल्कुल ठीक थी। लेकिन मैं तो अपनी अजन्मी बच्ची के खून का बदला लेना चाहती थी नेताजी से।
तब डॉक्टर दास,डॉक्टर मीनाक्षी और शहर की जानी मानी ब्यूटी पार्लर की मालकिन नताशा ने ही मेरी मदद की। उन्होंने ही 32 साल की मीनाक्षी जी का ऐसा मेकअप किया कि वे बिल्कुल 7 साल की प्यारी सी बच्ची की तरह दिखाई देने लगी।
32 साल की मीनाक्षी को सात साल की जुली बनाकर मैं उसे लेकर औरंगाबाद के हर इलाक़े में घर बदल बदल कर किराए में रहने लगी। ताकि ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को पता चले कि जुली मेरी ही बेटी है। हम उस सही वक्त का इंतजार कर रहे थे जब हम नेताजी को पूरी प्लानिंग के साथ दबोच सकें। फ़िर हमें पता चला कि नेताजी केरला समाजम स्कूल के पुराने ट्रस्टी है, और स्कूल के लगभग हर प्रोग्राम में आते रहते है। तब मीनाक्षी को ही जुली बनाकर हमने केरला समाजम के इस स्कूल में दाखिल करवाया और उस दिन जब फंक्शन के दौरान मीनाक्षी से पहली बार नेताजी की मुलाक़ात हुई तब मीनाक्षी ने कुछ सेकंड्स में ही माला पहनाते वक़्त नेताजी को हिप्नोटाइज़ कर लिया था। उसके बाद से नेताजी वहीं कर रहे थे जो उनकी नज़र में सात साल की जुली उनसे कहने को कर रही थी।
पूरी तरह होश में नहीं थे नेताजी इसलिए जुली ने ही उनसे कहा था कि वे प्रोग्राम में भाषण ना दे। फ़िर प्रोग्राम के ख़त्म होने के बाद मीनाक्षी जी ने ही नेताजी को फॉर्म हाउस चलने को कहा था, वहां पहुँचकर उसने ही नेताजी से बेहिसाब अल्कोहल का सेवन करने को कहा था ताकि वे उसके नशे से बेहोश हो जाएं फ़िर अपने बैग से उन्होंने खून का वो पाउच निकाला जो डॉक्टर दास ने हमें दिया था। किसी हॉस्पिटल के पोस्टमार्टम करने वालों से सेटिंग थी ये मिस्टर दास की। इसलिए जुली के ब्लड रिपोर्ट में ये आया कि खून पहले से मरी हुई बॉडी का था।
मीनाक्षी ने पहले तो खून बिस्तर में फैलाये फ़िर हसुएँ के ऊपर खून लगाकर हसुएँ को नेताजी के हाथ मे पकड़ा दिए। फ़िर अपना यूनिफॉर्म खोलकर वो बैग से साधारण कपड़े पहनकर खिड़की के रास्ते से बाहर निकल गयी, जहां डॉक्टर दास पहले से खड़े थे। इसलिए फॉर्म हाउस के गार्ड ने नेताजी के साथ बच्ची को अंदर जाते हुए तो देखा था लेकिन बाहर निकलते हुए नहीं।
हम सब सोच रहे थे कि आये दिन तो शहर में बच्चियां मरती ही रहती है, ऐसे ही किसी लाश की पहचान के लिए जब पुलिस मुझे बुलाएगी तो मैं बता दूंगी कि हा यहीं जुली की लाश है। इस तरह नेताजी हमेशा हमेशा के लिए जेल में बंद हो जाएंगे और सही मायनों में उन्हें मेरी आठ महीने की अजन्मी बच्ची जुली के खून की सज़ा मिल जाएगी, लेकिन दुर्भाग्यवश इन दिनों शहर में कोई भी लावारिस लाश मिली ही नहीं। इतना बताकर राधिका जी फूटफूटकर रोने लगी।
लेकिन इस पूछताछ के एक हफ़्ते बाद, कल नेताजी की कोर्ट में पेशी है। उनके वकील ने ज़ोर शोर से तैयारी कर ली है। जुली की लाश ना मिलने की वजह से कल नेताजी बाइज्जत बरी कर दिए जाएंगे। लेकिन अगली सुबह औरंगाबाद शहर के अखबारों में जो ख़बर छपकर आयी उसने पूरे शहर में तहलका मचा दिया।
"जाने माने शहर के नेताजी के फॉर्म हाउस के बगीचे की खुदाई में कल ज़मीन के नीचे दफनाई हुई एक बच्ची की लाश इंस्पेक्टर रुद्र को मिली है। इस घटना के वक़्त फॉर्म हाउस का गार्ड और दाऊद नगर थाने के इंस्पेक्टर रुद्र के साथ इंस्पेक्टर वरुण भी मौजूद थे। हालांकि लाश बुरी तरह सड़ चुकी है लेकिन लैबरेटरीयो का कहना है कि ये वहीं बच्ची की लाश है, जिसके हत्या के आरोप में नेताजी पिछले ढाई महीने से जेल में बंद थे। अब लाश के मिल जाने पर मामला साफ़ हो गया कि खून नेताजी ने ही किया था"।
इस ख़बर के छपने के एक महीने बाद हाई कोर्ट ने फ़ैशला सुनाया की मासूम की बच्ची जुली के हत्या के आरोप में नेताजी को उम्रकैद की सज़ा होगी।
दाऊद नगर थाने की ये सुबह काफ़ी खुशमिजाज नज़र आ रही थी। आज भी इंस्पेक्टर रुद्र के ऑफिस में तीन खाली चाय के प्याले चल रहे पंखे की हवा में ख़ुद को सुखा रहे थे। और कमरे में बैठे इंस्पेक्टर रुद्र, इंस्पेक्टर वरुण और राधिका जी तीनों ही अपनी जीत की ख़ुशी में मंद मंद मुस्कुरा रहे थे।
समाप्त
Renu Singh"Radhe "
17-Jul-2021 10:26 PM
बहुत खूब 💐💐
Reply
Kumawat Meenakshi Meera
12-Jun-2021 08:25 AM
Wah bahut bdhiya
Reply
Author sid
12-Jun-2021 08:20 AM
आप इस तरह से लिखते है , लगता है जैसे सब सामने हो रहा है , आपकी राइटिंग का कोई जवाब नही है मैंम ।
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